"चन्द्रमा मनसो जातः श्चक्षोः सूर्यो अजायत" यह मंत्र पुरुष सूक्त से है, जो ऋग्वेद (10.90.13), यजुर्वेद (31.12) और अथर्ववेद (19.6.0.7) में पाया जाता है।
इसका अर्थ है: "समष्टि पुरुष के मन से चन्द्रमा, नेत्रों से सूर्य, कानों से वायु और प्राण, और मुख से अग्नि उत्पन्न हुआ"। यह मंत्र बताता है कि विराट पुरुष के विभिन्न अंगों से ब्रह्मांड के तत्वों का जन्म हुआ है।
पूरा मंत्र (हिंदी में)
चन्द्रमा मनसो जातः, चक्षोः सूर्यो अजायत।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च, मुखादग्निरजायत॥
मंत्र का अर्थ
चन्द्रमा मनसो जातः: समष्टि पुरुष के मन से चन्द्रमा का जन्म हुआ।
चक्षोः सूर्यो अजायत: उसके नेत्रों से सूर्य उत्पन्न हुआ।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च: कानों से वायु और प्राण का जन्म हुआ।
मुखादग्निरजायत: मुख से अग्नि उत्पन्न हुई।
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